Wednesday, June 09, 2010

भूल सकोगे मुझको

जून कि गर्मियां थी. मै कुछ कह नहीं पाया और वह मुंह फेरकर चली गयी, सोचता रहा कि शायद हर बार की तरह इस बार भी कुछ समय के लिए ही जा रही है लेकिन नहीं एक दिन, दो दिन, सप्ताह के बाद छह माह बीत गये. नाराजगी दोनों कि बनी रही.  जिंदगी जैसे तैसे कटने लगी. लेकिन भगवान ने तुमसे मिलने का एक मौका दे ही दिया.
 राज भाई कई दिन से जिद कर रहे थे पुणे के लिए, चल दिए,  मन नहीं था लेकिन यह सोचकर की तुम वहां हो चल दिए, खुशी थी मिलने की और विश्वास था कि इस बार मना लूं,  तुम्हारी जिद थी कि जल्दी शादी कर लूं,  इस बार पूरी कर दूंगा. चाहे बिना नौकरी के रहना हो या घर की कोई  समस्या.
रास्ते में यही सोचता रहा कि तुम्हारी बात मान लेता तो शायद तुम मेरे साथ रह रहे होते, तुमसे बात किए हुए छह महीने से अधिक हो गय,
पुणे पहुंच गए, पिछली बार तुम्हारे साथ था, लेकिन इस बार तो यह भी नहीं पता कि तुम कहां हो, चलो नम्बर है इसका सकून था, सुबह छह बजे ही थे,  सोचा तुम्हे सरप्राइज दे दूं, मै पुणे आ गया हूं, लेकिन फोन नहीं उठा तो डर लगा;  मन में अजीब सी शंकाएं आयीं लेकिन प्यार का भरोसा था इसलिए छंट गयीं,
अचानक फ़ोन पर तुम्हारा नंबर देख कर लगा सब हासिल हो गया,
हेलो, क्यो फोन कर रहे हो
मै पुणे मे हूं
तुम्हे लेने आया हू
लेकिन मै तुम्हारे साथ नहीं जा सकती
अब मै तुम्हारी नहीं रही
ऐसा मत कहो
नाराजगी अपनी जगह है
मै सच कह रही, मेरी शादी हो चुकी है
तुम इस तरह की बातें कर मुझे खुद से दूर रखना चाहती हो
तुम्हे मजाक लग रहा मै सच कह रही

मुझे लगा शायद मेरी धडकने रुक जाएंगी, खुद को रोकते हुए कहा अच्छा अब जो भी हो एक बार मिल तो लो
नहीं यह नही हो सकता
मेरे विश्वास के लिए मिल लो
मै अब किसी और की हो चुकी हूं
कुछ सोचने के बाद जवाब दिया, अच्छा शिवाजी बस स्टैंड पर आउंगी
ओके

दोपहर के तीन बज चुके थे, बेसब्री से में उसके आने का इंतजार कर रहा था. तभी सामने से वही जाना पहचाना चेहरा आता हुआ दिखा. लेकिन यह क्या गले में सुहाग की निशानी, मांग में सिंदूर. मैं दर सा गया, फिर सोचा,
अरे यह तो इसकी पुरानी आदत है, मुझे परेशान करने के लिए जाने क्या-क्या करती रहती हैं
अब तो तुम्हे विश्वास हो गया, पास आते ही उसने यही पूछा
जो दिख रहा जरूरी नहीं वो सही है

तुम्हारे मानने के लिए मै क्या करुं
तुम सच कह दो
मैने शादी कर ली है
यह सच है
पूरा
सच
बिल्कुल

उसके बाद मैं कुछ बोल नहीं सका,  एक बार उसके चेहरे पर नजर डाली सुनहरा भविष्य अब एक अतीत की तरह  सामने नज़र आ रहा था.  प्यार का वो एक जमाना उसके चेहरे पर था लेकिन वक्त ने सुहाग की निशानियो से उसे मिटा दिया,
मै बुझे कदमों से लौटने लगा
तभी पीछे से आवाज आयी
उसने रुंधे गले से कहा, शादी कर लेना!
मैं सवालिया निगाहों से उसे देखता रहा,
उसने कहा,
मेरे बिना रह नहीं पाओगे.........शादी कर लेना....

4 comments:

  1. पंकज भाई, अपनी कहानी तो नहीं न, वरना बुरा कहूँगा, नहीं तो दिलचस्प.....

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  2. is this about what/whom i think it is about??? khair, bohot achcha likha hai...touching...

    (PS: i'm sorry i dnt know hindi typing)

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  3. bhai pankaj ham ek dusre se wakif to nahi hai par ek rishta sambedna ka bhi to ho sakta hai isiliye itna sab likhne ki himmat juta paya hu aajkal jindagi ne mujhe bhi kuch aise he chaurahe par lakar khada kar diya hai...bahut achcha likha hai aapne...aapke shabd dard me dube dube se hai...plz accept my congrets

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