हर कष्ट अब स्वीकार है
जैसे मिली कोई खुशी
कौन अपना है यहां
किससे कहें हैं क्यों दुखी
वेदना के कंटकों को
यूं ही अब सहना पडेगा
आप ही अब दर्द अपना
विष घूंट सा पीना पडेगा
मैं समझता था जिसे
है प्यार का बंधन अनूठा
था निमिष केवल दिखावा
हर खुशी हर शोक झूठा
bahut khoob sir...
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