Wednesday, June 09, 2010

अर्धनारीश्वर, गौरी और पेम्पो

मेरे परिवार का नाम सुन कर थोडी हंसी भी आती और कौतुहल भी होता है। वो मुझे अर्धनारीश्वर कहतीं हैं, आप सोचेंगे शायद मुझे प्राणों का स्वामी और श्रद्धा से वशीभूत होकर इस श्रधेय नाम से पुकारा जाता है, या मेरा परिवार इतना धार्मिक हो गया कि  देवाधिदेव के कुटुम्ब के नाम को अपना लिया। फिर सोचने की बात है यह पेम्पो कौन है। आइए देखते हैं, क्या है राज

तुम मुझे इस नाम से क्यों बुलाती हो, और ये पेम्पो नाम क्या है! यह सवाल मैने पत्नी से किया

तो क्या तुम्हे अच्छा नहीं लगता! उसने तड़क के सवाल दाग दिया

मै सहमते हुए बोला, नहीं बात यह नहीं बस यूं ही लोग पूछते हैं!
पेम्पो को नहीं जानते, गणेश जी को पेम्पो बोलते हैं! उसने बडे ही विश्वास के साथ जबाव दिया.
मेरा तो माथा ही ठनक गया।
मैने कहा किस वेद में तुमने गणेश जी का नाम पेम्पो पढ लिया। या किस पंडित ने बताया।
किसी ने नहीं, ये तो मैने खोजा है। उसने जबाव दिया
तुमने! लेकिन आज तक मैने क्या किसी ने भी गणेश जी का नाम पेम्पो नहीं सुना।
ये जब मैंने खोजा तो कोई और कैसे सुन लेगा.
अपनी आखों को बाद कर के कुछ सोचते हुए वह कहती है.  एक बार मैं सपने में गणेश जी को देख रही थी, तब उनका नाम मुझे नहीं मालूम था, जब सुबह नींद खुली तो मैने मां से कहा कि मुझे पेम्पो चाहिए। मां भी समझ नहीं पायी। फिर मैने गणेश जी की प्रतिमा दिखायी। तब मां को भी समझ में आया। बस यहीं से गणेश जी पेम्पो हो गये।
मुझे तो एक बारगी चक्कर ही आ गया। इस तर्क के आगे कुछ कहने को बचा ही नहीं।
लेकिन तुम गौरी कैसे! फिर मैने सवाल किया!


जब तुम अर्धनारीश्वर तो मै गौरी। सीधा और मासूम सा जबाव लेकिन मेरा कौतूहल तो बढ गया!
आखिर मै अर्धनारीश्वर क्यों!
पहले तो वो टालती रही लेकिन बार-बार कहने पर, मुस्कुराने के अंदाज में उसने जबाव दिया.
 तुम बाहर नौकरी करते हो, मेहनत करते हो, पैसा कमाते हो। जीवन की दुश्वारियां सहते हो। पुरुष प्रधान समाज की व्यवस्था के अनुरूप परिवार, मां-बाप की जिम्मेदारी संभालते हो। तो तुम आधे पुरुष हो।

आधे पुरुष पर, मैं चौंका, मैने कहा तो मैं आधा हूं।

मुस्कुराते हुए उसने कहा, अरे पूरी बात तो सुनो! अभी तो आधा ही बताया है.

जब तुम बाहर की जिम्मेदारी निभाकर घर आते हो तो, सब्जी खरीदते हो, खाना की तैयारी करते हो, खाना बनाते हो, रात में बर्तन भी धोते हो। सुबह चाय भी तुम ही बनाते हो। मशीन में कपडे धोने से लेकर घर की सफाई सब तो तुम करते ही हो। तो यह क्या है महिला स्वरूप नहीं है। तो तुम आधे नारी हुए।

बस इसी लिए तुम्हार नाम अर्धनारीश्वर है, और मै तुम्हारी गौरी!

इतना सुनने के बाद मैं गश खाकर गिर पडा, तंद्रा टूटी तो देखा मशीन में कपडे धुल चुके थे। गौरी कपडे बाहर सुखाने के लिए चिल्ला रही थी। ऑफिस भी जाना था.

1 comment:

  1. छुट्टी ले लिजिये ऑफिस से...आज तो मन नहीं लगेगा ऑफिस में. :)

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