Wednesday, June 02, 2010

रौशनी

रौशनी
                                पंकज सिंह
हम जला रहे हैं प्यार से प्यार के दिए 
की तुम नहीं तो रौशनी कहाँ से फिर मिले
यत्न  यत्न ज्योति को सम्भाल हम रहे 
की रौशनी भी है रुकी बस तुम्हारे ही लिए 
आ के दीप्ति तुम भरो तम मयी प्रकाश में 
कर दो प्राण संचरित हर एक दीप की श्वांस में 
बाट जोहते तेरी ये रौशनी के बिन दिए 
की आ भी जाओ रौशनी के मेघ तुम लिए

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