रौशनी
पंकज सिंह
हम जला रहे हैं प्यार से प्यार के दिए
की तुम नहीं तो रौशनी कहाँ से फिर मिले
यत्न यत्न ज्योति को सम्भाल हम रहे
की रौशनी भी है रुकी बस तुम्हारे ही लिए
आ के दीप्ति तुम भरो तम मयी प्रकाश में
कर दो प्राण संचरित हर एक दीप की श्वांस में
बाट जोहते तेरी ये रौशनी के बिन दिए
की आ भी जाओ रौशनी के मेघ तुम लिए
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