Saturday, October 23, 2010

फिर आओ 'हे राम'


वर्तमान में, आम जन मानस के लिये विकट परिस्थितियां हैं। अब यह आवश्यक हो गया है कि एक बार फिर राम का अभ्युदय हो। जो जनमानस को व्यस्था के विरूद्ध खडा कर सके। आंतकी रूपी राक्षसी प्रवृत्तियां अपने चरम की ओर वढ रहीं हैं और राजनैतिक दल रूपी देव शक्तियां अपने निजी स्वार्थों के चलते उनका विरोध नहीं कर पा रहीं हैं। पूजींपति व्यवस्था आम आदमी का खून चूसने को तैयार हैं। समाज में व्याप्त भ्रष्‍टाचार, लोलुपता और वैमन्यस्यता की स्थिति विस्फोटक हो गयी है। सत्ता अब उदंड एवं उच्छृंखल हो चुकी है। जो केवल अपने स्वार्थों की पूर्ती का साधन भर रह गयी है। सत्ता का मद किसी मान्यता और मूल्यों नहीं पहचाने दे रहा है। बन्धुओं-परिजनों को भी धन और लाभ ने परस्पर शत्रुता की आग में झोक दिया है।
जब सत्ता कमजोर या स्वार्थी हो जाती है तो हमेशा शोषण पनपता है। शासन की पूरी शक्ति अपने व्यक्तिगत विलास में ही समाप्त हो रही है। आम आदमी शोषित हो रहा है लेकिन अपनी प्रवृतियों के चलते चाहते हुये भी विरोध नही कर सकता क्योंकि वह संगठित नहीं है। जिससे उसे लड़ना है वह एक संगठित एवं व्यवस्थित तंत्र है। उसने धन सम्पदा और जीवन की अन्य आवश्यकताओं को अपने अधिकार में कर रखा है। व्यवस्था पर उनके अधिकार के चलते वे जब चाहें जैसे चाहें एक आम इंसान को शोषित कर रहे हैं। सबसे बडी बात कि शोषण भी ऐसा कि हमारे द्वारा ही हमारा शोषण कर लिया जा रहा है। हमारे हितों का झूठा संदर्भ दिखा कर हमारे धन और श्रम का उपयोग कर वे अमीर से अमीर होते चले गये और श्रमशील जन सामान्य शोषित एवं पीडित।
हम यह समझ पाने में सक्षम नहीं हैं कि हमारा शोषण किस प्रकार किया जा रहा है। व्यवस्थाओं को इतना दुरूह बना दिया गया है कि वे आम आदमी को संचालित होते तो दिख रही हैं लेकिन कैसे संचालित हो रहीं हैं और उसमें उसको कितना लाभ और हानि हो रही है, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
लेकिन अब जगना होगा। इन व्यवस्थाओं से लड़ कर ही एक समता मूलक समाज तैयार किया जा सकता है। एक राम को फिर आकर इन्हे संगठित एंव संघर्ष के लिये तैयार करना होगा। राक्षस वृत्तियों से मुक्ति तभी होगी जब हम सामूहिक लडाई के लिये तैयार हों। जन सामन्य को प्रत्येक कदम पर लडना होगा और सदैव संघर्ष के लिये तैयार भी रहना होगा

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