Monday, August 30, 2010

भटकते-भटकते

भटकते-भटकते कभी तो मिलेगी
वो रुठी हुई दिलरुबा जिंदगानी
वो जिसके लिए हमने सपने सजाए
वो जिस पे लुटा दी है सारी जवानी
भटकते-भटकते
आंखों से तेरे भी बहने लगेगा
जज्‍बात का वो खारा सा पानी
कभी तुमको छू के सिहरती हवाएं
सुनाएंगी जब मेरे गम की कहानी
भटकते-भटकते

No comments:

Post a Comment