वर्तमान कांग्रेस पार्टी मूल कांग्रेस की एक ऐसी फोटोकापी है जिसमें लिखे शब्दों की स्याही उड चुकी है। लेकिन कांग्रेसी इस नाम को भुनाने की कोशिश में लगे हैं। महात्मा गांधी को कांग्रेसी अपनी निजी मिल्कियत समझते हैं लेकिन इतिहास कहता है कि गांधी जी ने 1939 में कांग्रेस को छोड दिया था। इसके पीछे उनका तर्क था कि 1937 के चुनावों में कांग्रेस सरकार में शामिल हो गई है। इसलिए अब यह एक राजनीतिक पार्टी बन चुकी है, यह अब वह कांग्रेस नहीं जो एक आंदोलन के तौर पर शुरु की गई थी। कांग्रेस ने यहां अपना स्वरुप थोडा बदला। इसके बाद आजादी मिली तो नेहरु की कांग्रेस का जन्म हुआ। कांग्रेस की सरकार। जो एकमाञ पार्टी होने के चलते शासन में आ गई। लेकिन कांग्रेस तब टूटी जब 1969 के दौरान इंदिरा गांधी ने इसे अपनी निजी पार्टी बना ली। के कामराज के अध्यक्ष पद जीतने के बाद कांग्रेस आई का गठन हुआ। जो आज भी चला आ रहा है। पार्टी के स्वरुप में 1990 के दशक में बदलाव आया। जब सोनिया गांधी को प्रधानमंञी बनाने और न बनाने पर चाटुकारिता शुरु हुई। देश और भारतीयता से अनभिज्ञ सोनिया ने अपनी कमियों को छुपाने के लिए पद लेना स्वीकार नहीं किया जिसे पार्टी ने उनकी त्याग भावना बताकर प्रचारित किया।
पार्टी अब केवल एक व्यक्ति की पार्टी होकर रह गई है।मनमोहन देश के प्रधानमंञी हो सकते हैं लेकिन कभी सोनिया से उपर नहीं। पार्टी राष्ट्रपति या प्रधानमंञी तय कर सकती है, लेकिन सत्ता की कमान उस एक तंञ में रहेगी।जो वंशानुगत चल रही है। जबकि मूल कांग्रेस में गांधी जी ने इसका हमेशा विरोध किया कि कांग्रेस आंदोलन या पार्टी किसी एक व्यक्ति या उसके संरक्षण में संचालित हो। तो क्या कांग्रेस उस मूल कांग्रेस की एक ऐसी फोटोकापी रह गई है जिसपर से वक्त ने स्याही धुंधली कर दी हो।
पार्टी अब केवल एक व्यक्ति की पार्टी होकर रह गई है।मनमोहन देश के प्रधानमंञी हो सकते हैं लेकिन कभी सोनिया से उपर नहीं। पार्टी राष्ट्रपति या प्रधानमंञी तय कर सकती है, लेकिन सत्ता की कमान उस एक तंञ में रहेगी।जो वंशानुगत चल रही है। जबकि मूल कांग्रेस में गांधी जी ने इसका हमेशा विरोध किया कि कांग्रेस आंदोलन या पार्टी किसी एक व्यक्ति या उसके संरक्षण में संचालित हो। तो क्या कांग्रेस उस मूल कांग्रेस की एक ऐसी फोटोकापी रह गई है जिसपर से वक्त ने स्याही धुंधली कर दी हो।
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