यूपी सरकार प्रदेश में निवेश का माहौल बनाने में जुटी है लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं। कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार दिख रहा है लेकिन यह एक मनोस्थिति वाली बात है। निवेशक या उद्योग के लिए यह मनोस्थिति अनुकूल तो है लेकिन केवल इसके भरोसे उद्योग लगाना-चलाना संभव नहीं है।
सड़क-कनेक्टिविटी
प्रदेश में सड़क नेटवर्क की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। लखनऊ से पूर्वांचल के गोरखपुर को छोड़ दें तो वाराणसी, आजमगढ़, गाजीपुर, देवरिया, सोनभद्र, मिर्जापुर जैसे जिलों में पहुंचना बहुत चुनौती भरा है। यही हालात पश्चिम के जिलों की भी है। लखनऊ से बरेली फोर-लेन का काम सालों से पूरा नहीं हो सका है। हरदोई, लखीमपुर जैसे नजदीक के जिलों में भी पहुंच पाना बहुत मशक्कत का काम है। कुछ शहरों को राजधानी लखनऊ और दिल्ली से जोड़ने के लिए सड़कों का निर्माण तो हो रहा है लेकिन काम या तो बहुत धीमा है या बंद पड़ा है।
बिजली
दूर-दराज के क्षेत्रों में बिजली की पहुंच अब भी बहुत अच्छी नहीं है। हालांकि सप्लाई में सुधार हुआ है। गांव-कस्बों में सप्लाई 18 घंटे की जा रही है लेकिन अभी उद्योगों को बिजली देने के लिए आधारभूत संरचना नहीं है।
मानवसंसाधन
बेरोजगारी बहुत अधिक है लेकिन उद्योगों में काम करने योग्य लोग भी नहीं मिल रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि परम्परागत शिक्षा से डिग्री तो मिल रही है लेकिन योग्यता-कुशलता नहीं आ रही है। आईटीआई-पॉलिटेक्निक में भी जो कोर्स पढ़ाए-सिखाए जा रहे हैं वह परम्परागत ढर्रे पर चले आ रहे। इनमें अपग्रेडेशन नहीं हुआ है। इसके चलते आईटीआई-पॉलिटेक्निक की डिग्री लेने के बाद भी युवाओं को रोजगार में अच्छा वेतन-स्थान नहीं मिल पा रहा है। वहीं उद्योगों के सामने संकट यह आ जाता है कि प्रशिक्षित मैनपॉवर न होने के चलते उन्हें स्थानीय लोगों की अपेक्षा बाहरी लोगों को नौकरी पर रखना पड़ता है।
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