पत्रकार और खूँटा
चर्चाओं से कुछ हासिल होने वाला नहीं। जिसे मिले वह फायदा उठाए। सबकी चिंता में कुछ नहीं मिलेगा। पत्रकारिता अब सिद्धांतों पर चलने वाली नहीं रही। पत्रकार ऐसी बिरादरी है कि अगर आप अपनी मेहनत से भी कुछ पा रहे होंगे और इन्हें पता चल जाए तो पूरी शिद्दत से लग जाएंगे ताकि आप का बनता काम बिगड़ जाए, नुकसान हो जाए। एक साथ बैठे काम करने वाले लोग कब अनायास आपकी कुर्सी खींच दें पता नहीं। कुटिलता से सहानुभूति भी दिखाएँगे और आप पर हंसतेे भी रहेंगे । यह मानसिकता जब होगी तो कौन किसी और के लिए सोचेगा? इसलिए बहुत समाजसेवा की सोचने की जगह अपने अपने फायदे वाले खूंटे खोज कर मजबूती से थाम लीजिए। यही काम आएगा। नहीं तो इसी तरह ग्रुप पर चर्चा ही करते रह जाएंगे सब।
...पंकज सिंह की खरी खरी।
Friday, August 26, 2016
पत्रकार और खूंटा
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